हिन्दी कहानी
में मार्क्सवादी यशपाल हिन्दी कहानी के क्षेत्र में उतरे। इन्होंने सामाजिक जीवन
दिल को छू जाने वाली एक माँ के ममता की कहानी
गीदड़ गीदड़ ही रहता है : पंचतंत्र की कहानी
की घटनाओं को मनोइच्छित रूप देते थे। कहानी की रचना के लिए वे काल्पनिक, दैवीय, और चमत्कारी
इनकी कहानियों में मध्यमवर्गीय समाज के व्यक्तियों का विश्लेषण मिलता है। इनकी
कहानी के जोबन का उभार और बोल-चाल की दुलहिन का सिंगार किसी देश में किसी राजा के घर एक बेटा था। उसे उसके माँ-बाप और सब घर के लोग कुँवर उदैभान करके पुकारते थे। सचमुच उसके जीवन की जोत में सूरज की एक सोत आ मिली थी। उसका अच्छापन और भला लगना कुछ ऐसा न था जो इंशा अल्ला ख़ाँ
परम्परा से जोड़ते है तो कुछ कहानी विधा को पाश्चात्य साहित्य की देन मानते हैं।
भाववादी मनोवैज्ञानिक परम्परा से। इसलिए इन्हें इतिहासकारों ने प्रगतिवादी और
खरगोश, तीतर और खरगोश : पंचतंत्र की कहानी
राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द की कहानी 'राजाभोज का सपना' भी ऐसी ही कहानी है, इसमें भी थोड़ा बहुत आधुनिकता का स्पर्श मिलता है। इन
शिवप्रसाद सिंह, रघुवीर सहाय, रामकुमार भ्रमर, विजय चौहान, धर्मवीर भारती, भीष्म साहनी, लक्ष्मी नारायण
खजूर के वृक्षों की छोटी-सी छाया उस कड़ाके की धूप में मानो सिकुड़ कर अपने-आपमें, या पेड़ के पैरों तले, छिपी जा रही है। अपनी उत्तप्त साँस से छटपटाते हुए वातावरण से दो-चार केना के फूलों की आभा एक तरलता, एक चिकनेपन का भ्रम उत्पन्न कर रही है, यद्यपि है सब अज्ञेय
इन्दुमती अपने बूढ़े पिता के साथ विंध्याचल के घने जंगल में रहती थी। जबसे उसके पिता वहाँ पर कुटी बनाकर रहने लगे, तब से वह बराबर उन्हीं के साथ रही; न जंगल के बाहर निकली, न किसी दूसरे का मुँह देख सकी। उसकी अवस्था चार-पाँच वर्ष की थी जबकि उसकी माता का परलोकवास किशोरीलाल गोस्वामी
वह बात न मीरा ने उठाई, न ख़ुद उसने। मिलने से पहले ज़रूर लगा था कि कोई बहुत ही ज़रूरी बात है जिस पर दोनों को बातें कर ही लेनी हैं, लेकिन जैसे हर क्षण उसी की आशंका में उसे टालते रहे। बात गले तक आ-आकर रह गई कि एक बार फिर मीरा से पूछे—क्या इस परिचय को स्थायी राजेंद्र यादव